शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

पुकारता तू आसमाँ

पुकारता तू आसमाँ 
निहारता तू भौर है 
मिला रवि से तेज है 
शशि ने हिलोर है 

है लक्ष्य पर बढ़े कदम 
क्षितिज का न छोर है 
समेट ले तू सारे गम 
लगा ले दम किनोर  है 

मिली विजय न राह पर
 जीवन मरण का दौर है 
ख़ुशी है किसके वास्ते
 ख़ुशी से मन विभौर है 

हुई क्यों आँख तेरी नम 
मिला नहीं तुझे सनम 
धरो चरण करो वरण 
 सफल न करता शोर है 

खुद ही से तू है हारता 
खुद ही पे तेरा जोर है 
तू ही जीवन संवारता 
भीतर तेरे ही ठौर है

सुहाता नहीं ये समा 
 अभी तो तू किशोर है 
सुबह से ले ले ताजगी 
 जगेगा पोर पोर है

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज