सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

आलोकित है तम घन घोर

मन से मन का पावन रिश्ता
 मन से मन की जुडती डोर
टिम टिम तारो की है चम चम 
दीये सहारे हो गई भौर

दर्द भरा है दिल के भीतर
 मचा हुआ है बाहर शोर
लुटा रहा है दीपक सब कुछ
 आलोकित है तम घन घोर

जीवन में मरती क्यों आशा
 प्यास  बस रही चारो और 
लेकर आई आज दिवाली
 जग मग राते उजला दौर

 प्यारा सारा देश हमारा 
मीठी कोयल नाचे मोर 
सेना के सैनिक मतवाले 
सीमाओ पर बढता  जोर 



गो का वर्धन हो गोवर्धन
 हो मर्यादित वाहन शोर 
वैदिक जैविक आज जिए हम 
 आनंदित होकर विभोर

छला हुआ है भोला ये मन
 पले हुए है आदम खोर
बना रहे है मिलकर टोली
खुनी लुटेरे कातिल चोर 


सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

माँ तेरी करुणा में बल है

माँ शारदे का हंस होता 
श्वेत सुन्दर और नवल है 
सत्य की होती प्रतीति 
ज्ञान का अमृत तरल है 

ज्ञान का गहरा सरोवर 
अंकुरित होते कमल है 
श्वेत वसना सौम्य मूर्ति 
माँ तेरी करुणा में बल है 

पंक भी होता है उर्वर
 शंख रहता सिंधु जल है
मान से जीवन मिलता 
अपमान में होता गरल है

सत्संग से जीवन खिलता 
सत्य तो होता अटल है 
संत की करुणा की छाया
संवेदना होती सजल है

अज्ञान में होता अहम् है 
ज्ञान सहज और सरल है
माँ तेरी कृपा से सृजन 
काव्य की धारा प्रबल है

शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

मन से मन की डोर

शारदीय नवरात गई ,शीत बढ़ी प्रतिदिन 
दिखा चन्द्रमा प्रीत भरा, रात हुई कमसीन

जाग उठे जज्बात नए, पर अलसाई भौर 
प्रीत रीत ये बाँध रही ,मन से मन की डोर 

जीवन सारा बीत गया,मिला नहीं सुख चैन 
चाहत की छवि दिखी नहीं ,प्यासे रह गए नैन 

आज यामिनी महक रही, चमक रहा है चंद्र 
शरद पूर्णिमा में पाए है ,अमर तत्व के छंद

सोमवार, 3 अक्तूबर 2016

रिश्ते से ही घर बनते है

रिश्तो के पनघट रहे है रिश्तो से विश्वास 
रिश्ते से ही घर बनते है रिश्तो में एक आस 

रिश्तो की पूंजी रही है प्रीती का अहसास
रिश्ते से मिलती खुशिया है रिश्तो से उल्लास

रिश्ता माटी से रहा तो देश भक्ति पास
माटी का कण कण बचा लो सीमाएं उदास

रिश्ता अपनों से रहा है स्वप्न का मधुमास
रिश्तो में होती प्रतीती और परिधि व्यास

मंगलवार, 13 सितंबर 2016

निद्रा

निद्रा क्या है
निद्रा एक स्वप्न है 
स्वप्न जो नेत्र खुलते ही  ध्वस्त हो जाता है 
निद्रा जब तक रहती है 
स्वप्न हँसाता है रुलाता है 
अप्राप्त वस्तुओ की प्राप्ति का अनुभव कराता है 
निद्रा दीर्घ कालीन नहीं 
अल्पकालीन होती है 
अनुभूतियों खट्टी मीठी अत्यंत शालींन होती है 
निद्रा में आलस्य है प्रमाद है थकान है
गहराई हुई रातो में यह मन लेता
 सपनो में ऊँची उड़ान है
स्वप्न अर्ध चेतना का प्रतिरूप है 
कल्पना चेतना सृजनशीलता है 
कर्म का होता स्वरूप है 
विशुध्द और निर्विकार मन 
निद्रा नहीं योग निद्रा ध्यान करता है 
नित्य नयी ऊर्जा पाकर
 आनंद का अनुभव  रसपान करता है 
इसलिए हे मन निद्रा नहीं 
योग निद्रा और ध्यान करो 
परम चैतन्य परमात्मा की स्तुति 
 उसका ही गुणगान करो


बुधवार, 6 जुलाई 2016

बह चली हर धार है

कह रही कुछ पंक्तिया है 
होते अंकित भाव है 
बीज होते अंकुरित है
 और मिलती छाँव है
महकती हर क्यारिया है 
फल रही हर नस्ल है 
बादलों में जल भरण है
 मार्ग के भटकाव है

बारिशो में बूँद छम छम
 तृप्त धरती नेह है 
लौट आई आज चिड़िया 
घोसले में गेह है 
बह चली चंचल नदिया
 बह चली हर धार है 
हो गया पुलकित यौवन 
और दमकी देह है

बुधवार, 27 अप्रैल 2016

अनुभव पुरातन पास है

ढला शिल्प में जब सोच है निर्मित हुआ कुछ ख़ास है 
चित्रित हुई हर कल्पना  दिखा रंग और उल्लास है

हुई बाग़ में तुलसी घनी हुआ पुष्ट मन विश्वास  है 
हुई वेदना से दिल्लगी विष्णु प्रिया निज पास है 

नभ छूने को आतुर हुई चढ़ी  पेड़  पर यह बेल है 
तब शून्य से सृष्टि बनी  हुई व्यष्टि विकसित खेल है 

बरसो निखरती जिन्दगी पल में मिला वनवास है 
रही स्मृतियाँ अनकही रहा मन के भीतर वास है 

मन हर पुराने गम रहे रहा तिमिर फिर भी आस है 
मिली हमें है नूतन जिंदगी अनुभव पुरातन पास है

मंगलवार, 19 अप्रैल 2016

कब मिलेगी छाँव है

भंवर फूलो पर रहे है झील रहती नाव है
ताप देती गर्मिया है तप रहे सिर पाँव है
हो कहा पर प्रिय मेरे बोलती है आज टहनी
खो गई जग से शीतलता खोई खोई छाँव है 

जल में होती है शीतलता जल निर्मल भाव है
तृप्ति को वन वन भटके सूखते कूप गाँव है
हो कहा पर वत्स मेरे बोलती है आज मिटटी
कट गए है वृक्ष सारे और बिकती छाँव है 

हो गए अपकृत्य सारे लुप्त जल की आंव हैै
पक्षीगण बून्द बून्द तरसे रोज मिलते घाव है
गई कहा चंचल चिड़िया चहचहाती क्यों नही
गगन सेे अब आग बरसे कब मिलेगी छाँव है

सोमवार, 11 अप्रैल 2016

दीक्षित नहीं यह पौध है

आंधिया उठते बवंडर मार्ग पर अवरोध है 
दर्द से गमगीन चेहरे ,युध्दरत हर बोध है 

द्वेष की परछाईयाँ है मन में पलते द्व्न्द्व है 
बारूदी होती है खुशिया हो रही हुड़दंग है 
आस्था घायल हुई है दीखता प्रतिशोध है 

माटी से होती बगावत कौनसा प्रतिकार है 
राष्ट्र भक्ति क्षय हुई है उन्हें जय से इनकार है 
सत्य से भटके विचारक लक्ष्य विचलित शोध है 

भ्रम है फैला मन विभञ्जित क्लांत सी तरुणाई है 
वृक्ष पर फल है विषैले विष फसले पाई है 
शिक्षा से होते न शिक्षित दीक्षित नहीं यह पौध है

शनिवार, 19 मार्च 2016

क्रोध को आक्रोश मत बनने दो


आक्रोश एक
उबलता हुआ क्रोध है
जज्बात है
जो बाहर आना चाहते है
पर मजबूर है
कसमसा कर मुठ्ठियाँ भींचे हुए
क्रोध जब अभिव्यक्त नहीं हो पाया
तो वह आक्रोश बना
आक्रोश एक लावा है
जो बरसो सीने में दफ़न रहा
आक्रोश को
अभिव्यक्ति के अवसर की तलाश है
बहुत दिनों से वह अभिव्यक्त नहीं हो पाया है वह
आक्रोश असमानता
शोषण और अन्याय की उपज है
अभाव जिसका भाई
गरीबी और अशिक्षा जिसकी बहन है
आक्रोश कभी अकारण नहीं होता
सकारण होता है
अकारण तो आतंक होता है
क्रोध आक्रोश बन जाए
उससे पहले भावनाओ के माध्यम से
बहने दो
क्रोध को क्रोध ही रहने दो
हताशा और आक्रोश मत बनने दो 

सोमवार, 7 मार्च 2016

सेवा का हो दान

घट घट में शिव व्याप्त हुए ,माता तेरे तट 
रेवा जल से मुक्त हुए ,पाखंडी और शठ 

माँ रेवा की आरती , रेवा तट  पर स्नान 
माँ पुत्रो के कष्ट हरे  ,देती सुख सम्मान 

निर्मल कोमल नीर भरा, ,है नैसर्गिक तट
कलयुग में भी स्वच्छ रहे।,तेरे तट पनघट 

मेरे मन की पीर हरो, करता हुँ जब स्नान
 तन मन को तृप्त करो, सेवा का हो दान

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

शब्द से संसार है

शब्द में रहती  मधुरता, शब्द से संसार है 
शब्द से होता समन्वय ,शब्द से व्यवहार है 

शब्द से संवाद रहता , मन्त्र सद विचार है 
शब्द में शुभकामना है, सद्भावना हर बार है 

शब्द का एक व्याकरण है, आचरण आभार है 
शब्द में ब्रह्माण्ड रहता ,ब्रह्म निर्विकार है 

शब्द से रुबाइयाँ है ,गीत की झंकार है 
शब्दहीन संवेदना है, भावना के तार है 

शब्द भी कुछ जानता है ,अर्थ को पहचानता है 
अर्थ का कुछ मूल्य पा लो ,शब्द ही व्यापार है 


 शब्द में आलोचना है ,व्यंग्य बारम्बार है 
छंद में हर रस भरा है ,काव्य का शृंगार है 

शब्द शक्ति को बचा लो, शब्द ही पतवार  है 
शब्द की सीमाये पा लो ,लेखनी की धार है 


शब्द में ऊंचाइयां है ,गहराईयाँ है भार है 
अर्थ भी मुश्किल रहे है, शब्द से दीवार है 

शब्द से कोई पा रहा है, प्यार की बौछार है 
जा रहा है शब्द से ही, शख्स वह हर बार है

रविवार, 31 जनवरी 2016

मानव सेवा का वन्दन है

सेवा का जिसमे भाव भरा 
करूणा का पाया चन्दन है
करुणा से पाई मानवता 
 मानव सेवा का वन्दन  है

तन दुर्बल होकर मरा मरा
 मन मूर्छित होकर डरा डरा
बचपन ने खोई कोमलता 
 फूटे सपनों के क्रंदन है

लिए  घाव गरीबी  हाथो मे
 बूढी माँ रहती लातो मे
झुग्गी रोती है रातो मे 
सपनों मे रहता नंदन  है 

सुख रहा सदा ही भावो में 
वह तृप्त रहा अभावो में
दुःख महलो में भी पलते है  
होते सुविधा में बंधन है



बुधवार, 13 जनवरी 2016

व्यष्टि और सृष्टि

सृष्टि में समष्टि और
समष्टि में व्यष्टि समाहित है
सृष्टि में जल वायु बच जाए तो सुरक्षित है
व्यष्टि ने समष्टि
समष्टि ने सृष्टि को किया दूषित है
सृष्टि में वृष्टि शीत कही होती है कम
कही होती अपरिमित है
शहर गाँव सड़क खेत
सभी होते आप्लावित है
मिल जाए कही निर्मल जल
स्वच्छ वायु तो लग जाए चित है
निज स्वास्थ्य हमारा मीत है
सृष्टि का आरम्भ है मध्य है
और अंत भी सुनिश्चित है
पर अंत तक चेतना जीवित है
इसलिए हे  व्यष्टि तुम समष्टि के संग
अपनी सृष्टि को बचाओ
सृष्टि रस द्रव्य कण में
परम तत्व को पाओ

सोमवार, 11 जनवरी 2016

शक्ति या सामर्थ्य

शक्ति जहा व्यक्ति का बाह्य बल है
सामर्थ्य वही व्यक्ति की आंतरिक क्षमता है
शक्ति का अर्थ जहाँ यह दर्शाता है
कि कोई व्यक्ति किसी को कितना पीट सकता है
सामर्थ्य यह प्रकट करता है
कि कोई व्यक्ति कितना सह सकता है
शक्ति जहाँ आक्रामकता है
सामर्थ्य वहा सहिष्णुता है
शक्ति करती जहाँ युध्द क्रीड़ा है
सामर्थ्य में रहती भीतर की पीड़ा है
सागर की लहरे उठ कर ऊपर की लहराती है
तूफान के भीतर सुनामी ले आती है
तब वह शक्ति की अभिव्यक्ति करती
प्रलय मचाती है
सामर्थ्य वह है 
जो सागर की गहराई में रहता
विशाल जल राशि को नापता है
पर्वतो की ऊंचाई और विशालता है
जिसकी  विराटता को देख हृदय काँपता है
सामर्थ्य जहा धारण करने की क्षमता है
शक्ति वही मारण का कारण है
सामर्थ्यशाली व्यक्ति की क्षमता
सदा होती असाधारण है
सामर्थ्य आकाश है 
जहाँ कई आकाश गंगाएँ रहा करती है
सामर्थ्य शिव है
जिनकी जटा से माँ गंगा ही नहीं
पसीने से रेवा बहा करती है
सामर्थ्य वह धैर्य है 
जो संकल्प में पला करता है
संकल्प का बल पा 
सामर्थ्य सदा भला करता है
व्यक्ति वही महान है जो सामर्थ्यशाली है
सामर्थ्यवान व्यक्ति की झोली 
कभी नहीं होती खाली है

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज