शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

जीवन गीता श्लोक हो

घर आँगन में दीप  जला लो ,ह्रदय में आलोक हो 
उजियारे से प्रीत लगा लो ,मन  निर्भय अशोक हो 

जग जननी माँ दुर्गा लक्ष्मी ,देती यश धन बल है 
गुणों से पूजित हो जाते ,गुण  बिन सब निष्फल है
गुण  को पा लो स्वप्न सजा लो ,धरा स्वर्ग का लोक हो 

ज्योति से होता उजियारा, ज्योतिर्मय जगदीश है 
ज्योतिर्मय जग मग आशाये ,ज्योति का आशीष है 
चमक दमक दीपो की ज्योति ,जीवन गीता श्लोक हो

मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014

दीवाली के दीप जले है, दीपो का त्यौहार है

दीवाली के दीप  जले है, दीपो का त्यौहार है 
मिली रोशनी अंधियारे को ,खुशियो की बौछार है 

मिटटी से बन जाता सब कुछ, माटी करती  प्यार है 
मिटटी के दीपक कर देते ,धरती का श्रृंगार है 
मिटटी से ही शिल्प ढला  है ,शिल्पी का  औजार है 

गौरी की छम छम पायलिया , बैलो के बजते घुँघरू 
रंगो से सजती दीवारे ,मस्ती की डम डम  डमरू 
दीपक सा जग -मग हो तन मन रोशन हर दीवार है 

कर्मो का यह दीप  पर्व है, करम धरम का मर्म है 
शुभ कर्मों  का सुफल होगा ,नीच कर्म से शर्म है 
बिना कर्म के आज नहीं है ,सपने हो बेकार है

सोमवार, 20 अक्तूबर 2014

दिवाली है

अमीर हो या गरीब 
उजला धन हो तो दिवाली है 
जन निर्धन हो या सम्पन्न 
मन प्रसन्न हो तो दिवाली है 
ब्लैक मनी नहीं है हनी 
व्यवस्था भ्रष्ट हो तो जिंदगी काली है 
प्रशासन सख्त हो  कामकाज में
 व्यस्त हो तो दिवाली है 
जीवन हरा भरा हो 
अपराधी  डरा  डरा  हो तो दिवाली है
 सेवा  ही धाम हो 
भक्ति निष्काम हो तो खुशहाली है 
धड़कन में राम हो
 मन में विश्राम हो तो दिवाली है

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज