मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

जो नजदीक है दूर हुए ,दूर रहते वो पास

रिश्तो का इतिहास रहा ,रिश्तो का  भू -गोल 
रिश्ते लाते प्रीत रहे ,रिश्ते मीठे बोल 

रिश्तो की  है  रीत रही ,रिश्तो के रिवाज 
रिश्ते नाते टूट रहे ,निकली न आवाज 

भावो से जो  रिक्त रहा रिश्तो से अनजान 
रिश्तो की गहराई को ,मानव  तू पहचान 

खूशबू से भरपूर रहा ,रिश्तों का अहसास 
जो नजदीक है दूर हुए ,दूर रहते वो पास 

रिश्तो से कुछ आस रही , मन  लगती है  ठेस 
अपनो से तो पीर मिली , प्रीत मिली  परदेस

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

संतुष्टि तो मन की अवस्था है

संतुष्टि का कोई पैमाना नहीं होता
कोई व्यक्ति एक बूँद पाकर संतुष्ट हो सकता है
कोई व्यक्ति समुन्दर पाकर संतुष्ट नहीं होता
संतुष्टि तो मन की अवस्था है
असंतोष की कोई सीमा नहीं होती
असंतुष्ट व्यक्ति को जितना मिल जाय कम है
असंतुष्ट व्यक्ति को संतुष्ट करना 
बहुत मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है
असंतुष्ट व्यक्ति का साथ होता बहुत दुखदायी है
संतोषी व्यक्ति ने सदा ही खुशिया बरसाई है
संतुष्ट वह व्यक्ति है जो भीतर जो संत है
भीतर की सत्ता की संतुष्टि का स्तर अनंत है
संतुष्ट मीरा थी 
जिसने गरल को पीया तो अमृत पाया है
संतुष्ट संत रसखान थे 
जिन्होंने धर्म को पूजा नहीं जिया है
इसलिए  सदा संतुष्ट रहो
असंतुष्ट रह कर कभी नहीं निकृष्ट और दुष्ट रहो

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज