गुरुवार, 26 सितंबर 2013

निर्धनता मन में भरी हुई

राहे कांटो से भरी हुई 
खुशिया दुखो से डरी  हुई
कुंठित होती अभिलाषा है
 तृष्णाए  मन में हरी हुई

हुए स्वप्न पखेरू
है घायल
 और नदी हिलोरे लेती है 
जहरीली होती  हुई फसले
फसले  पोषण कहा देती है
रेतीले सुख बहे जाते 
आशा जीवन में मरी हुई

यहाँ मिला सत्य को निर्वासन 
सज्जनता दुःख सहती है
नारे नफ़रत से भरे हुए 
दानवता विष को बोती  है
यहाँ दया दीन  पर नहीं आई
 निर्धनता मन में भरी हुई 

यहाँ मिला दीप से काजल है 
निर्बल का होता मृग दल है 
हुआ दीप शिखा से उजियारा 
उजियारे में होता बल है 
रोशन होता है अंधियारा
बिंदिया  मांथे पे धरी हुई

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज