रविवार, 7 अक्तूबर 2012

आत्मीयता

आत्मीयता की उड़ान ऊँची उड़ान है
आत्मीयता में आत्मा का रसास्वादन है
कान्हा की प्रीत, राधा का स्नेह
नील कंठ का विषपान है
आत्मीयता में आत्मा का वंदन है
मोह के माथे पर नेह का चन्दन है
आत्मा का परमात्मा से स्नेहिल बंधन है
आत्मीयता जहां होती है
वहा स्वादिष्ट लगती सूखी रोटी है
आत्मीयता के बिना भावो  की तृप्ति कहा होती है
आत्मीयता शबरी के झूठे बैर है
कान्हा के सम्मुख कैलो के छिलको में
विदुर सवा सेर है
आत्मीयता निराशा में जीवन की आशा है
आत्मज्ञान है सच्चे ज्ञान की पिपासा है
प्रियतम से मिलने से मिलने की उत्कट अभिलाषा है
इसलिए जिसे भी चाहो उसे आत्मा में बसाओ
आत्मा को आत्मा के करीब ले आओ
असंख्य आत्माओं का समूह ही तो होता परमात्मा है
कोटि कर्मो के बंधन से ही निकलती जीवात्मा है
आत्मीयता की स्थापना से  ही तो सिध्दी होती है
आत्मीय संबंधो की कीर्ति और प्रसिध्दी होती है
जीवन में सिध्दी और प्रसिध्दी का होना अनिवार्य है
आत्मीयता बनाए रखे
आत्मीय सम्बन्ध स्वीकार्य है 

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज