सोमवार, 9 जुलाई 2012

जबाब नपा-तुला है

कमजोर रोशनी हुई
 तो अंधियारा ही ढला है
लगी गरीब की हाय  
क्योकि घर उसका जला है 

सिर्फ दिए जलाने भर से 
दिवाली नहीं होती
सफलता पायी उसी ने 
सीखी जिसने जीने कला है 

रास्ता न्याय का  
सिर्फ उन्हें ही दिखाई देता है 
जिनका चिंतन निर्मल है और ​​​ उजला है

काले कारनामो को 
कितना भी छुपा ले कोई
अंतत न्याय तो 
फरियादी को ही मिला है 

उनके चेहरे पर 
सच्चाई दिखाई नहीं देती है  
पर उनकी भाषा संयमित है
जबाब नपा-तुला है

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज