रविवार, 4 मार्च 2012

नारी

चन्दा  संग है ढली चाँदनी 
पूर्ण चन्द्रमा बना सिकंदर
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 तन मन सुन्दर चिंतन सुन्दर 
 धरा हरी तो जीवन सुन्दर 
 माता का ममतापन  जिसमे 
रूप पत्नी सा अनुपम सुन्दर 
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बिटिया सी प्यारी न्यारी है 
,प्यार है पाया सात समंदर
 करते क्यों छलनी अवनी को 
हीरे मोती इसके अन्दर
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 नारी की काया छाया से 
जग में होता हर पल सुन्दर 
 नियति भी नारी का रूप 
बहती सरिता महका अम्बर
                  -
विनीता सम सरिता है रहती 
सरिता से मिलता है समंदर 
 नारी का आश्रय  मिलते ही 
सुधरा जीवन हटे बवंडर

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज