शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

हरी भरी वादिया है दृश्य विहंगम

दर्द की घाटी मे गीतो का उदगम
हरी भरी वादिया है दृश्य विहंगम

अश्रु सम भर आई ,बरसाती नदिया
               खंडहरनुमा हुई ,बीती हुई सदिया
झरता है गिरता है झरनो सा हर गम

घमंडी पगडंडी ,पड गये छाले
सडके हुई ठंडी ,कुचले घरवाले
खो गई जीवन मे खुशियो की सरगम

बन गये मरघट है ,सुख गये पनघट
तिर्थो पर पन्डो के ,रह गये जमघट
गंगा और यमुना का प्रदूषित संगम

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज