शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

कुछ कही ,कुछ अनकही है

प्रतिदिन पीना पडता है ,जीने के लिये गरल
जीवन मे जटिलताये रही, रास्ते नही रहे सरल

पीडायें मन की कुछ कही , कुछ अनकही है
जर्जर अवस्था से युक्त ,जीवन की खाताबही है
संवेदनाये निज ह्रदय की, अब हो रही है तरल

सद्भभावना के पंछी को ,गिध्द घृणा के नोंचते है
कट जायेगा यह वक्त भी,एकांत मे यह आंसू सोचते है
समस्याये सघन गहन हुई, हुये समाधान विरल


हर शख्स कि अपनी होती, एक राम कहानी है
कथाये नैतिकता की ,नही सुनाते नाना नानी है
पस्त विश्वास पर टिका रहा आस्था का धरातल

समय ने समग्र चुनौतियों को देखा है परखा है
कहा तक ले जायेगी निकम्मो को भाग्य की रेखा है
स्वप्न कुसुम खिलने के उपाय ,अब नही रहे  सरल






कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज