रविवार, 4 सितंबर 2011

मंडप




हरती ठुमकती ठिठकती है ठंडक
तटो पर ठिठुरते टर्राते है मेंढक !! ध्रुव पद!!

सर्दीले दिन होते ,सर्दीली राते
शीतल पवन करती शर्मीली बाते
हिमगिरि से आते  हिमगिरि से आते 
खुश्बू भरे पल तो हिमगिरि से आते 
लगती है ठंडक चिपकती है ठंडक
घरो से निकलते ही लगती है ठंडक !!!!
,,,,,,,,,,,,,,,,,,ठहरती ठुमकती ठिठकती है ठंडक
अंधेरो को चीरती हुई आती  बयारे
शीतल निर्मल जल तो फसले सॅवारे
बिछाये है मौसम ने कोहरे के मोहरे
हुई यादो सी धुंधली ठिठुरती दोपहरे
सभी हुए बन्धक सभी हुए बन्धक
विस्मित है प्रबन्धक,सभी हुए बन्धक !!!!
,,,,,,,,,,,,,,,,ठहरती ठुमकती ठिठकती है ठंडक
हरी होती जाती है गेहू की बाली
सॅवरती है सजती है मिटटी की थाली
मौसम के य़ौवन ,ने फसले सम्हाली
लोगो के चेहरो पर दिखती दिवाली
धरा से गगन तक चतुर्दिक क्षितिज तक
तने हुये मंडप ,तने हुये मंडप, तने हुये मंडप!!!!
..................ठहरती ठुमकती ठिठकती है ठंडक




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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज