जीवन के संग्राम में मिला असमय शोक
नियति के संत्रास को रोक सके तो रोक
रोक सके तो रोक रे दर्प दंभ और स्वार्थ
निरुपाय फिर आज खड़ा है सत्य धर्म पुरुषार्थ
कहत विवेक सुनो भई सज्जन सत्य हुआ है पस्त
षड्यंत्रों के चक्रव्यूह में हुए सत्कर्मी है त्रस्त
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न बिकती हर चीज
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